हमारे प्रदेश बिहार सहित हमारे देश में डॉक्टर को भगवान माना जाता है जो अपने हुनर द्वारा मरीजों को एक नया जीवन देता है.लेकिन जब उन्हीं डॉक्टरों की संवेदनहीनता के चलते उस राज्य के हजारों मरीजों का जीवन खतरे में पड़ जाये जो अपनी गरीबी के लिए जाना जाता है तब कई सवाल खड़े हो जाते हैं.हड़ताल के अधिकार का गाँधी ने भी इस्तेमाल किया था. लेकिन डॉक्टरी का पेशा अन्य पेशों से इस मामले में अलग है कि इसका सीधा सम्बन्ध मानव-जीवन से है. मैं ये नहीं कहता कि डॉक्टरों को सम्मानित जीवन जीने का अधिकार नहीं है. लेकिन अपनी मांग रखने के लिए बिहार के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल पी.एम.सी.एच. के जूनियर डॉक्टर दूसरा रास्ता भी चुन सकते थे.हड़ताल के दौरान पिछले ७ दिनों में कम-से-कम ८० लोगों की अनमोल जिंदगियों का अंत हो चुका है. जिसे हम दे नहीं सकते हमें उसे छीनने का कोई हक़ नहीं है. हड़ताली डॉक्टरों को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि वे अपनी मेडिकल की पढाई पर जितना खर्च करते हैं सरकार का, समाज का उन पर उससे दस गुना ज्यादा पैसा खर्च होता है जो उन पर समाज का कर्ज होता है.इसी बिहार में और पी.एम.सी.एच. के ही मेडिसिन विभाग में शिवनारायण सिंह जैसे डॉक्टर भी हुए हैं जिन्हें उनकी निःस्वार्थ सेवा भावना के चलते गरीबों ने भगवान का दर्जा दिया.उनको गुजरे अभी २० साल भी नहीं हुए और हमारे डॉक्टर-मित्रों के आदर्श इस हद तक बदल गए कि इन्हें मरीजों की जिंदगी तक की परवा नहीं है.
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