बुधवार, 10 नवंबर 2010

धंधा है इसलिए गन्दा है

 दुनिया के किसी भी लोकतंत्र में किसी भी राजनेता के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है उसकी सार्वजनिक छवि.लेकिन जब समाज का ही नैतिक पतन हो जाए तो इसका महत्त्व अपने आप ही समाप्त हो जाता है.कहते हैं कि राजनीति काजल की कोठरी होती है और जो भी इसमें आता है उसका दागी हो जाना स्वाभाविक है.लेकिन यह भी सच है कि जहाँ आग होती है धुआं भी वहीँ होता है.आज के दौर में भी कई ऐसे राजनेता मौजूद हैं जिनका दामन पाक साफ़ है.कोई भी तंत्र तकनीक के समान निर्दोष होता है.यह उसे संचालित करनेवाले पर निर्भर करता है कि उसकी सोंच क्या है,उसकी मनोवृत्ति क्या है?आज का सच यह है कि राजनीति अब जनसेवा का माध्यम नहीं रह गई है बल्कि इसने धंधे का स्वरुप अख्तियार कर लिया है.और धंधा है तो गन्दा भी हो सकता है.क्योंकि धंधे का तो कोई उसूल होता ही नहीं.वह तो सिर्फ लाभ के लिए किया जाता है.कहते हैं कि सत्ता व्यक्ति को भ्रष्ट कर देती है.चूंकि कांग्रेस ने देश पर सबसे ज्यादा समय तक शासन किया है इसलिए यह स्वाभाविक है कि भ्रष्टाचार के सबसे ज्यादा आरोप समय-समय पर इसी पार्टी के नेताओं पर लगे हैं.आदर्श सोसाईटी घोटाले में बुरी तरह फंस चुके अशोक चौहान से कांग्रेस ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दिलवा दिया है.लेकिन क्या इससे भ्रष्टाचार पर लगाम लग जाएगी?क्या भ्रष्टाचार के आरोपी नेता को केवल पद से हटा देना ही पर्याप्त है?नहीं कदापि नहीं!यह जहर अब वट वृक्ष रूपी भारतवर्ष के नस-नस में फ़ैल चुका है और सिर्फ फुनगी काट देने से इसका कुछ नहीं बिगड़ने वाला.आदर्श घोटाले में तो सेना भी फंसी हुई है.अभी कुछ ही दिनों पहले हुई वर्धा रैली के समय कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर भी मुख्यमंत्री अशोक चौहान से २ करोड़ रूपये बस के भाड़े के लिए देने के लिए कहने का आरोप स्वयं प्रदेश अध्यक्ष मानिक राव ठाकरे की गलती से सामने आया था और अब बात आई-गई भी हो गई है.यानी भ्रष्टाचार की गन्दगी राजनीति की गंगा में स्वयं शीर्ष नेतृत्व यानी गंगोत्री से ही आ रही है.जब किंग मेकर ही भ्रष्ट होगा तो किंग तो भ्रष्ट होगा ही.पार्टी फंड भी देश में भ्रष्टाचार का माध्यम बन गया है.इसलिए इन इक्के-दुक्के लोगों पर कार्रवाई करने से भ्रष्टाचार न तो कम होने जा रहा है और न ही मिटने जा रहा है.महाराष्ट्र का क्षत्रप चाहे कोई भी हो उसे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पेशवा (केंद्रीय नेतृत्व)को सरदेशमुखी तो देना ही होगा.हमारे राजनीतिज्ञों के नैतिक स्तर में लगातार गिरावट आ रही है.अब तो घपले-घोटालों से सीधा सम्बन्ध होने का सबूत होने के बावजूद भी मंत्री-मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री इस्तीफा नहीं देता.राष्ट्रमंडल खेलों में करोड़ों की हेराफेरी का आरोपी होने पर भी कलमाड़ी अंग्रेजी हैट पहने माथा गर्वोन्नत किए घूम रहे हैं.हालांकी कांग्रेस ने उन्हें अपनी कार्यसमिति से हटाकर खुद को पाकसाफ सिद्ध करने का प्रयास किया है.लेकिन क्या इतनी कार्रवाई ही काफी है?क्या उन पर निष्पक्षता से मुकदमा चलाकर उन्हें इसके लिए दण्डित नहीं किया जाना चाहिए?लेकिन यक़ीनन ऐसा नहीं होने जा रहा है.पिछले ५०-६० सालों में सत्ता में रहते हुए कांग्रेस इस तरह के न जाने कितने ही मामलों की लीपा-पोती कर चुकी है.अभी भी भ्रष्टाचार का राजा ए.राजा केंद्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा है और कांग्रेस देशहित पर सत्ता को वरीयता देने के कारण उसे हटा भी नहीं सकता,जेल भेजना तो दूर की कौड़ी है.ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ कांग्रेस में ही गलत लोग हैं.ऐसे लोग सभी पार्टियों में हैं.हमारी विधायिका में एक तिहाई से भी ज्यादा जनप्रतिनिधि दागी हैं.स्थिति संतोषजनक भले ही नहीं हो,सुधार की गुंजाईश समाप्त नहीं हुई है.सबसे पहले तो सभी पार्टियों को निजी स्वार्थों से ऊपर उठना पड़ेगा और सत्ता पर देशहित को प्राथमिकता देनी होगी.लोकतंत्र में नैतिकता का महत्व अन्य शासन प्रणालियों से कहीं ज्यादा होता है.बिहार विधानसभा चुनाव में सभी राजनीतिक दलों ने लगभग ४७ % दागियों को टिकट दिया है.किसी-किसी सीट पर तो सारे उम्मीदवार ही दागी हैं.जनता किसको वोट दे और क्यों वोट दे?इसलिए जनप्रतिनिधित्व कानून में बदलाव करते हुए जनता को उम्मीदवारों को नकारने का अधिकार भी दिया जाना चाहिए.साथ ही अगर नकारात्मक वोट सबसे ज्यादा हो जाएँ तो नए उम्मीदवारों के साथ दोबारा मतदान होना चाहिए.तीसरा सुधार हमारी न्यायिक व्यवस्था में होना चाहिए और इस तरह की व्यवस्था की जानी चाहिए कि कानून के जाल में आने से छोटी ही नहीं बड़ी मछलियाँ भी नहीं बच पाए.

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