रविवार, 28 नवंबर 2010
हमें अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी होगी
भ्रष्टाचार के खिलाफ इस समय संसद में विपक्ष की एकजुटता देखते ही बनती है.विपक्ष अब भी जे.पी.सी. से कम पर मानने को तैयार नहीं है.लेकिन क्या विपक्ष वास्तव में भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करना चाहता है?नहीं,हरगिज नहीं.उसका मकसद इस मुद्दे पर सिर्फ हल्ला मचाना है.अगर ऐसा नहीं होता तो फ़िर मुख्य विपक्षी दल भाजपा भ्रष्टाचार के दर्जनों आरोपों से घिरे कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदुरप्पा को अभयदान नहीं दे देती.भ्रष्टाचार के विरुद्ध यह उसका कैसा जेहाद है कि तुम्हारा भ्रष्टाचार गलत और मेरा सही.भाजपा के इस पक्षपात ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध चल रहे अभियान के रथ को किसी परिणति तक पहुँचने से पहले ही रोक दिया है.अब यह निश्चित हो गया है कि देश को निगल रहे इस महादानव के खिलाफ तत्काल कुछ भी नहीं होने जा रहा.पिछले १५-२० दिनों से विपक्ष ने जिस प्रकार से संसद में गतिरोध पैदा कर रखा है उससे जनता में इस लड़ाई के किसी सार्थक परिणाम तक पहुँचने की उम्मीद बंध गई थी.उम्मीद बंधाने में सबसे बड़ा हाथ रहा है मीडिया का.हालांकि मैं इसमें मीडिया की कोई गलती नहीं मानता.विपक्ष इस मुद्दे पर कुछ इस प्रकार से आक्रामक हो ही रहा था कि कोई भी भ्रम में आ जाए.लेकिन अब भाजपा ने कर्नाटक में येदुरप्पा को अपदस्थ नहीं करने का निर्णय लेकर मोर्चे को ही कमजोर कर दिया है.जाहिर है हम इस लड़ाई में किसी भी राजनैतिक पार्टी पर भरोसा नहीं कर सकते.ये दल खुद ही भ्रष्ट हैं,फ़िर क्यों ये हमारी लड़ाई लड़ने लगे?जिस तरह अमेरिका भारत के लिए आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई नहीं लड़ सकता उसी तरह ये राजनैतिक दल भ्रष्टाचार के खिलाफ हमारे लिए नहीं लड़ने वाले.यह लड़ाई हमारी लड़ाई है और हमें खुद ही लड़नी पड़ेगी.उधार के कन्धों से लड़ाई जीती नहीं जाती बल्कि हारी जाती है.अब यह हम पर निर्भर करता है कि इस लड़ाई को हम कब शुरू करते हैं.अलग-अलग होकर लड़ते हैं या एकजुट होकर.अलग-अलग होकर हमारी केवल और केवल हार ही संभव है.एकसाथ होकर लड़ेंगे तो निश्चित रूप से जीत हमारी होगी और भ्रष्टाचार की हार होगी.देश में वर्तमान किसी भी राजनैतिक दल या राजनेता में वह नैतिक बल नहीं कि वह देश के लिए आतंकवाद और वामपंथी उग्रवाद से भी बड़ा खतरा बन चुके देश के सबसे बड़े दुश्मन भ्रष्टाचार के विरुद्ध होने वाली इस अवश्यम्भावी और अपरिहार्य बन चुकी लड़ाई में जनमत का नेतृत्व कर सकें.इसके लिए हमें नया और पूरी तरह से नया नेतृत्व तलाशना होगा.लेकिन यह भी कडवी सच्चाई है कि सिर्फ नेतृत्व के बल पर आन्दोलन खड़ा नहीं किया जा सकता.इसके अलावा लाखों की संख्या में तृणमूल स्तर पर जनता को प्रेरित करने वाले कार्यकर्ताओं की भी आवश्यकता होगी.कब उठेगा गाँव-गाँव और शहर-शहर के जर्रे-जर्रे से भ्रष्टाचार के खिलाफ गुब्बार मैं नहीं जानता.कैसे संभव होगा यह यह भी मैं नहीं जानता.मैं तो बस इतना जानता हूँ कि ऐसा गुब्बार बहुत जल्द ही दूर रक्तिम क्षितिज से उठेगा और देखते ही देखते पूरे देश को अपनी जद में ले लेगा.फ़िर भारत के राजनैतिक आसमान पर जो सूरज उगेगा वह निर्दोष और निर्मल होगा,ईमानदार होगा और अमीर-गरीब सब पर बराबर की रोशनी डालने वाला होगा.
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