सोमवार, 15 नवंबर 2010

बड़े बेआबरू होकर मंत्रालय से तुम निकले

आखिर यूपीए को बढ़ते जनदबाव के आगे झुकना पड़ा और अपने राजाजी अब राजा नहीं रहे लेकिन वे हमेशा जनता के दिलों में,उनकी यादों में बने रहेंगे.उन्होंने देश को पौने २ लाख रूपये का महाघोटाला जो दिया है.वरना हमने तो चारा और अलकतरा जैसे हजार-पॉँच सौ करोड़ के छोटे-मोटे घोटालों के बारे में पढ़-सुनकर संतोष कर लेना सीख लिया था.हमारे राजाजी ने हमें इस बात की अमूल्य शिक्षा दी है कि हमेशा बड़े की तमन्ना करो.वे अभी भी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं हैं और यह भी नहीं बता रहे कि इतना बड़ा घोटाला फ़िर उजागर हुआ किसकी गलती से.गजब का जीवट है उनका.मामला उजागर होने के बाद भी १ साल तक कुर्सी से चिपके रहे और जब देखा कि अब इस्तीफा देना ही पड़ेगा तब अपनी कालिख भरी बाँहों की आगोश में लेना चाहा प्रधानमंत्री कार्यालय को भी.शायद किसी ने मेरे गाँव की कहानी उन्हें भी सुना दी है.संचार क्रांति का समय जो है.हुआ यूं कि मेरे गाँव के एक गरीब ग्वाले को लड़की की शादी करनी थी.सो काफी परेशान रहा करता था.एक दिन बाल मूड देने के बाद जब गाँव का नाई उसकी दाढ़ी बना रहा था तब उसने उससे अपनी व्यथा सुनाई.नाई ने उससे कहा कि पहले क्यों नहीं बताया?वैसे यह उसका तकियाकलाम था.आगे उसने कहा कि उसके ससुराल में एक बड़ा ही होनहार लड़का है.उन दिनों होनहार का मतलब अच्छी खेती-गृहस्थी करनेवाला माना जाता था.दोनों एक दिन चल पड़े लड़का देखने.तब न तो गाड़ियाँ थी और न ही साईकिल वगैरह.पैदल चलते-चलते बीच जंगल में रात हो गई.कहानियों में रात हमेशा बीच जंगल में ही होती है.उन्होंने एक बड़े पेड़ की तलाश की और उसके मोटे तने पर सो गए.रात गहराई तो डाकुओं का गिरोह आ गया और उसी पेड़ के नीचे अपनी मेहनत की कमाई का बंटवारा करने लगा.जब वे लोग झगड़ने लगे तब तेज आवाज से ग्वाले भाई की नींद खुल गई और डर के मारे तना हाथ से छूट गया.बेचारा डालों से टकराता हुआ नीचे गिरने लगा.तभी नाई की नींद खुल गई.लेकिन नाई ठहरा चतुर-सुजान.सो घबराया नहीं और नाक से बोला,सरदार को ही पकड़ना.डाकुओं को लगा कि कोई भूत-पिचाश है और चूंकि सरदार का नाम लिया गया था इसलिए पहले भागने की बारी भी उसी की थी.आगे-आगे सरदार और पीछे-पीछे अन्य.पलक झपकते मैदान साफ़.सबसे पहले इस लोककथा से प्राप्त शिक्षा का प्रयोग हर्षद मेहता ने किया था प्रधानमंत्री नरसिंह राव के विरुद्ध.बाद में तो जैसे इस तरह के मामलों की बाढ़ ही आ गई.कुछ ही समय पहले कॉमन वेल्थ यानी कॉमन मैन के धन के गबन के आरोपी सुरेश कलमाड़ी भी पी.एम. कार्यालय को लपेटे में लेने की नाकामयाब कोशिश कर चुके हैं.अब इस फार्मूले से वे दोनों ग्रामीण तो बच गए थे.ऊपर से आर्थिक लाभ भी हुआ था.आर्थिक लाभ तो इन लोगों को भी हुआ लेकिन पगड़ीवाला सरदार डरा नहीं.उल्टे कुर्सी छीन ली.राजनीति में २ और २ चार ही हो कोई जरुरी भी तो नहीं.पौने दो लाख करोड़ के ऐतिहासिक घोटाले के कारण अपने राजाजी अभूतपूर्व तो पहले ही हो गए थे अब भूतपूर्व भी हो गए हैं.लेकिन होने से पहले हमें अवसर दे गए गर्व करने का अपने महान राष्ट्र पर.जहाँ मंत्री घोटाले में फँसने पर भी पूरे सालभर तक पद पर बना रहता है.दुनिया के किसी भी अन्य लोकतंत्र में ऐसा कोई उदाहरण नहीं.इट हैप्पेंस ओनली इन इंडिया.अब यूपीए यह कह सकती है कि राजाजी जैसे जिद्दी से इस्तीफा दिलवाकर उन्होंने उदाहरण पेश किया है.लेकिन ऐसा करके उसने देश पर कोई एहसान नहीं किया है.राजाजी तो उसके लिए गले की हड्डी बन गए थे जिसे या तो निगला जा सकता था या फ़िर उगला ही जा सकता था.जब तक बन पड़ा निगलने की कोशिश करते रहे.लेकिन जब देखा कि हड्डी बड़ी होती जा रही है तो उगल दिया और कोई उपाय भी तो नहीं था.मरता क्या नहीं करता?हम भाई लोग कब से अपनी आदत से मजबूर होकर राजाजी को मुफ्त में सलाह दे रहे थे कि सत्ता का मोह त्यागो,सब माया है.लेकिन वे ठहरे नास्तिक पार्टी के नेता सो ध्यान ही नहीं दिया.नहीं तो इस तरह इतना बेईज्जत होकर तो मंत्रालय से बाहर नहीं होना पड़ता.खैर राजाजी को अब भी चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है.बिलकुल भी नहीं.इस घोटाले का उनके कैरियर पर यक़ीनन कोई असर नहीं होगा.हमारी जनता की मेमोरी बहुत कम है १ जीबी से भी कम.वह बहुत जल्दी सबकुछ भूल जाएगी और फ़िर से जय-जयकार करने लगेगी.बस उस समय तक इन्तजार करना पड़ेगा और थोड़ी अंटी भी ढीली करनी पड़ेगी.खैर नेता हो या कोई आम आदमी बुरे वक़्त के लिए ही तो कमाता है.जय राजाजी,जय लोकतंत्र.तो अब आज्ञा दीजिए किसी अन्य राजनेता का घोटाला पुराण लेकर हम बहुत जल्द हाजिर होंगे.हमारे राजनेता बड़े ही योग्य हैं घबराईए नहीं हमें बिलकुल भी इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा और बहुत जल्दी कोई सूरमा इस पौने दो लाख करोड़ के नेशनल रिकार्ड को भंग कर देगा.तब तक के लिए हम कुछ और बात कर लेंगे.और भी बातें हैं ज़माने में घोटालों के सिवा.

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