गुरुवार, 30 जुलाई 2020

आज हमें अपने आप पर गर्व है


मित्रों, अगर आप मुझे नियमित रूप से पढ़ते हैं तो आपको याद होगा कि ऐसी ही कुछ पंक्तियाँ मैंने तब भी लिखी थीं जब २०१४ में नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे. तब मैंने लिखा था कि छोड़ो कल की बातें कल की बात पुरानी इसी तरह साल के अंत में हमने लिखा था कि भारतीय इतिहास का प्रस्थान विन्दु था 2014

मित्रों, तब मैंने वर्ष २०१४ के सत्ता परिवर्तन को १९४७ और १९७७ से भी बड़ी क्रान्तिकारी घटना बताया था. उससे भी पहले १५ अगस्त १९१३ को जब मोदी जी ने लालन कॉलेज, भुज से अपना ऐतिहासिक भाषण दिया था तभी मैंने भविष्यवाणी कर दी थी कि मोदी भारत के अगले प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं. और यह भी कहा था कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो भारत फिर से गुलाम हो जाएगा. उसी साल २ अक्तूबर को मैंने मोदी चालीसा लिखी थी और कहा था कि मोदी भारत के लिए वरदान हैं.

मित्रों, अगर हैं आज यह कहूं कि कल का दिन भी भारत के लिए ऐतिहासिक दिन था तो ऐसा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी. कल १८ साल बाद भारत में नए लड़ाकू विमान का आगमन हुआ. राफेल से पहले वर्ष २००२ में भारत ने वाजपेयी के समय रूस से सुखोई ख़रीदा था. बीच के समय में कांग्रेस पार्टी की सरकार सत्ता में थी और उसने भारतीय सेना को कमजोर करने की दिशा में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. अब जबसे मोदी सरकार सत्ता में आई तभी से उसने नई पीढी के लड़ाकू विमान के लिए प्रयास शुरू किया. और तभी से कांग्रेस पार्टी के नेता पगलाए हुए से हैं. शायद उनको इस बात का मलाल है कि रक्षा-खरीद में उनको कमीशन मिलना बंद हो गया है. साथ ही कांग्रेस पार्टी का चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ गुप्त समझौता भी है जिसके चलते कांग्रेस पार्टी नहीं चाहती कि भारत चीन पर हावी हो.

मित्रों, राफेल के आ जाने के बाद अब भारत अपनी ही जमीन से चीन और पाकिस्तान के अंदरूनी ठिकानों पर हवाई हमले बोल पाएगा. इतना ही नहीं वो एक साथ चीन और पाकिस्तान से निबट सकेगा. भारत की इस महँ उपलब्धि से जहाँ कांग्रेस पार्टी को खुश होना चाहिए वहीँ उसका चेहरा कद्दू की तरह लटका हुआ है.

मित्रों, भारत के इतिहास में कल एक और ऐसी घटना घटी है जो आनेवाले समय में भारत को विश्व-गुरु बनाने की दिशा में सहायक सिद्ध होनेवाली है. कल भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति की घोषणा की है. यह शिक्षा-नीति मैकाले की शिक्षा-नीति को उलटकर रख देगी जो अब तक सिर्फ किरानियों का उत्पादन कर रही है. अब भारत की शिक्षा-प्रणाली किरानियों के बदले उद्यमी पैदा करेगी. क्योंकि अब किताबी ज्ञान से ज्यादा हुनर और ज्ञान पर जोर होगा. बच्चे मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण करेंगे. साथ ही संस्कृत-शिक्षण पर भी बल दिया जाएगा. कहा भी गया है कि भारत की संस्कृति संस्कृत से है. इतना ही नहीं बीच में पढाई छोड़नेवाले बच्चों को भी प्रमाणपत्र दिया जाएगा. अब बच्चे जब चाहे तब स्ट्रीम भी बदल पाएँगे. कुल मिलाकर सिर्फ परीक्षा लेनेवाली शिक्षा-प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन होने जा रहा है जिसकी आवश्यकता आजादी के बाद से ही महसूस की जा रही थी.

मित्रों, आज सचमुच हमें अपने आप पर गर्व हो रहा है कि हमने दो-दो बार एक ऐसी सरकार को वोट दिया जो पूरी तरह से राष्ट्र पर समर्पित है और जिसका मानना है कि राष्ट्र रक्षासमं पुण्यं, राष्ट्र रक्षासमं व्रतम्, राष्ट्र रक्षासमं यज्ञो, द्रष्टो नैव च नैव च. वेल डन मोदी जी हमें आज आप पर भी गर्व है.

गुरुवार, 23 जुलाई 2020

भारतीय न्यायपालिका की प्रासंगिकता


मित्रों, बरसों पहले हिंदी फिल्म शिकार में एक गाना था-परदे में रहने दो पर्दा न उठाओ, पर्दा जो उठ गया तो भेद खुल जाएगा. दोस्तों, हमारी न्यायपालिका की गंदगी भी अब तक परदे के पीछे थी जिसे विकास दूबे कांड ने अकस्मात् सामने ला दिया है. दरअसल विकास दुबे एंकाउंटर की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट को पहली बार न्यायपालिका में खराबी नज़र आई है. सुप्रीम कोर्ट ने यह मान लिया है कि सिस्टम में गंभीर खराबी है। कहते हैं कि कोई बिल्ली अपनी ही गर्दन में कभी घंटी नहीं बांध सकती और कोई कभी अपने गिरेबान में झांकने की कोशिश नहीं करता. ठीक यही बात हमारे देश की न्यायपालिका पर भी लागू होती है.

मित्रों, अभी दो-तीन दिन पहले ही १९८५ में हुए एक बहुचर्चित हत्याकांड का फैसला आया है. जी हाँ, मथुरा जिला एवं सत्र अदालत को भरतपुर के पूर्व महाराजा किशन सिंह के पुत्र मानसिंह और उनके दो साथियों की फर्जी मुठभेड़ जो 11 फरवरी 1985 को हुई थी, में फैंसला सुनाने में 35 साल लग गए। अब तक सभी पुलिस वाले नौकरी से रिटायर हो चुके हैं. उनमें से ४ तो जिंदगी से भी रिटायर हो चुके हैं. अब जाकर कोर्ट ने दोषी पुलिसवालों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है जब उनका जीवन स्वतः समाप्त होनेवाला है. इस बहुचर्चित हत्याकांड की सुनवाई के दौरान 1700 तारीखें पड़ीं और 25 जिला जज बदले गए। वर्ष 1990 में यह केस मथुरा जिला जज की अदालत में स्थानांतरित किया गया था। कुल 78 गवाह पेश हुए, जिनमें से 61 गवाह वादी पक्ष ने तो 17 गवाह बचाव पक्ष ने पेश किए। 8 बार फाइनल बहस हो चुकी थी। इस सुनवाई के दौरान करीब 35 साल में लगभग 1000 से ज्यादा दस्तावेज पेश किए गए। मथुरा जिला कोर्ट ने पूर्व डीएसपी कानसिंह भाटी समेत 11 पुलिसवालों को दोषी करार देते हुए सजा सुनाई। कोर्ट ने तीन आरोपियों को बरी कर दिया। हत्या के 3 आरोपियों नेकीराम, सीताराम और कुलदीप की पहले ही मौत हो चुकी है। सबूतों के अभाव में आरोपी महेंद्र सिंह पहले ही रिहा किया जा चुका है।
 

मित्रों, ये तो हुई एक महाराजा को न्याय मिलने में हुई देरी की बात अब एक गरीब का भी उदहारण देख लीजिए. 13 जुलाई 1984 को कानपुर के एक डाकिये के खिलाफ 57 रुपया 60 पैसा गबन करने का एफआईआर दर्ज किया गया और निलम्बित कर दिया गया. 29 साल बाद 3 दिसम्बर 2013 को उसे निर्दोष पाया गया. मगर अफ़सोस, इतने सालों में पैसे की तंगी और 350 पेशियों पर आये खर्च से उसका गरीब परिवार दाने-दाने को मोहताज हो गया. इसी तरह 23 मई 1987 के चर्चित हाशिमपुरा केस का फैंसला 28 साल बाद मार्च 2015 में आया तथा 2 जनवरी 1975 के ललित नारायण मिश्र हत्याकांड का फैसला 40 साल बाद दिसम्बर 2014 में दोषियों को आजीवन कारावास की सजा के रूप में आया. कितने जिंदा बचे थे अभियुक्तों में से? बेहमई हत्याकांड जनवरी 1981 में हुआ. आज तक केस ट्रायल स्टेज में पड़ा है क्योंकि केस की मूल केस डायरी खो गई है।
 

मित्रों, ये कुछ उदाहरण उस सुप्रीम कोर्ट के लिए हैं जो सरकार से पूछ रही है कि विकास दुबे को उसके ऊपर कई दर्जन संगीन मामले होते हुए जमानत कैसे मिली. क्या सिर्फ पूछ लेने भर से सुप्रीम कोर्ट का कर्तव्य पूरा हो गया? क्या स्थितियां बदल गईं. पूछने की इतनी ही जल्दी थी तो जिन-जिन न्याय-मूर्तियों (?) ने विकास दूबे को जमानत दी थी उनको भी अगली तारीख पर तलब कर लिया होता। अदालत के अदर्ली, पेशकार से लेकर जज सब रोज़ बिकते हैं क्या सुप्रीम कोर्ट को नजर नहीं आता? एसी चैम्बरों में बैठकर पत्थरबाजों पर पैलेट गन न चलाने की हिदायत देना बहुत आसान है लेकिन वही न्याय-मूर्ति गर्दन झुका कर ये नहीं देख सकते कि उनकी अदालतों में क्या चल रहा है? जो जबान हिला कर ये नहीं पूछ सकते कि महाराष्ट्र के जज चश्मे नाक पर पहनते हैं या कहीं और जिससे कि उन्हें पालघर में निर्दोष, निरीह, वयोवृद्ध संतों की पुलिस-पब्लिक द्वारा संयुक्त रूप से की गई नृशंस हत्या नजर नहीं आती? कैसी हालत हो गई है कि एक जज से कुछ फुट की दूरी पर उसका पेशकार रिश्वत लेता है और जज को नहीं दिखता. फिर भी जनता को उम्मीद रहती है कि जज उसे न्याय देगा.

मित्रों, हम पूछते हैं कि सुप्रीम कोर्ट को कब समझ में आएगा कि सिर्फ पुलिसिया सिस्टम नहीं बल्कि पूरा सिस्टम गड़बड़ है. जरुरत इस बात की है कि सर्वोच्च अदालत उसे देखे और सोचे कि हाशिमपुरा, हैदराबाद और कानपुर जैसे मुठभेड़ करने और पैलेट गन चलाने की जरुरत क्यों पड़ती है और क्यों आम आदमी को इन मुठभेड़ों से राहत महसूस होती है? और अगर मेरी बातों से माननीय न्याय-मूर्तियों के अहं को ठेस लगी है तो डाल दें मुझे भी जेल में. मैं समझता हूँ कि ऐसी अंधेर नगरी में जहाँ इन्साफ अमावस्या का चाँद बन गया हो, रहने से अच्छा है जेल में रहना. लेकिन एक बार मेरे इस सवाल पर गौर जरुर करिएगा माई-बाप कि आज के समय में जब एक क्लिक से बड़ा-से-बड़ा काम हो जाता है, क्या भारत में न्यायपालिका की कोई प्रासंगिकता या उपयोगिता रह गयी है?

सोमवार, 20 जुलाई 2020

पेटा ने सिर्फ हिन्दुओं को क्यों लपेटा


मित्रों, क्या आपने कभी रक्षाबंधन पर पशुबलि दी है? क्या आपने उस दिन मांस खाया है? अच्छा आप यह बताईए कि उस दिन आपने कभी चमड़े से बनी राखी बाँधी है? आप कहेंगे कि मैं पागल हो गया हूँ नहीं तो ऐसे अनर्गल सवाल नहीं पूछता क्योंकि रक्षाबंधन पूरी तरह से शाकाहारी त्योहार है. उस दिन न तो हम हिन्दू पशुबलि देते हैं, न ही मांस खाते हैं और न ही चमड़े से बनी राखी ही बांधते हैं. तो फिर ये पेटा वालों को क्या हो गया है जो वे रक्षाबंधन पर हम हिन्दुओं से पशुओं की रक्षा करने की अपील कर रहे हैं. जी हाँ आपने सही समझा पेटा यानि People for the Ethical Treatment of Animals जिसका मुख्यालय अमेरिका के वर्जिनिया में है ने इस बार हिन्दुओं के पावन पर्व राखी पर जो पूरी तरह से शाकाहारी त्योहार है भारत के सात महानगरों में होर्डिंग लगाकर हिन्दुओं से पशुओं की रक्षा करने की अपील की है.
मित्रों, आप कहेंगे कि राखी से चार दिन पहले बकरीद है जिस दिन दुनियाभर के अरबों मुसलमान एकसाथ अरबों पशुओं की बलि देते हैं जिसमें गाएँ, ऊंट, भेंड और बकरे शामिल होते हैं तो पेटा ने जरुर बकरीद पर निर्दोष पशुओं की बलि नहीं देने की अपील मुसलमानों से की होगी. यही तो कमाल है इस महान विश्वव्यापी संगठन पेटा का कि इसे कदाचित बकरीद के बारे में कुछ भी पता नहीं है. शायद पेटा वाले भी आमिर खान की तरह इस गोले के निवासी नहीं हैं बल्कि दूसरे गोले से आए हैं.
मित्रों, इन सारे ढोंगी, पाखंडी, हिंदुविरोधी और छद्मधर्मनिरपेक्षतावादी संगठनों की शुरुआत से ही यही हालत है.जब भी जहाँ भी मुसलमानों की बात आती है इनकी जीभ इनके हलक में घुस जाती है. कई बार तो ऐसे संगठन हिन्दुओं के  पीड़ित होने पर भी उन्हें दोषी बता देते हैं जैसे कि इन दिनों दिल्ली की केजरीवाल सरकार के अंतर्गत काम करनेवाले अल्पसंख्यक आयोग की जाँच समिति बता रही है. समिति का मानना है कि दिल्ली का इस साल फरवरी का दंगा एकतरफा तौर पर हिन्दुओं ने किया. अंकित शर्मा ने खुद अपने ही हाथों अपने शरीर पर कई सारे चाकुओं से ४०० बार प्रहार किया, रतनलाल ने खुद अपने ऊपर पत्थरों की बरसात कर ली और दिलबर सिंह नेगी ने खुद अपने दोनों पैर काट डाले और उसके बाद खुद ही जलती हुई आग में कूद गया. साथ ही शाहरुख़ खान ने पुलिसवाले पर रिवाल्वर नहीं तानी बल्कि पुलिसवाले ने उस पर रिवाल्वर तान रखी थी. वो बेचारा तो नमाज पढ़ रहा था। इतना ही नहीं ताहिर हुसैन हिन्दुओं और हिन्दुओं के घरों पर पेट्रोल बम फेककर उनकी रक्षा कर रहा था. हिन्दुओं ने अपने स्कूल, गाड़ियाँ और दुकानें खुद ही जलाई डालीं मुसलमान तो उस आग को पेट्रोल से बुझा रहे थे.
मित्रों, हिन्दुओं के साथ ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. पालघर में हिन्दू संतों को मार दिया जाता है और फिर कह दिया जाता है कि वे चोर थे. इसी तरह गोधरा में मुसलमान ट्रेन में आग लगा कर ५५ हिन्दुओं को जिन्दा जला देते हैं लेकिन बनर्जी आयोग कहता है कि आग बोगी के भीतर से लगी थी बाहर से लगी ही नहीं. और अब पेटा वाले मुसलमानों को यह समझाने के बदले कि बकरीद पर पशु-हत्या नहीं करो हिन्दुओं को राखी पर गायों को नहीं मारने की सलाह दे रहे हैं जबकि वे जानते हैं कि हिन्दुओ के लिए गाएँ माता के समान है. साथ ही रक्षा बंधन पूरी तरह से शाकाहारी त्योहार भी है। उधर, ५ अगस्त को प्रधानमंत्री के अयोध्या जाने से शरद पवार सहित सारे मुस्लिम नेता परेशान हैं और वे निकट भविष्य में ५ अगस्त को कैलेंडर से हटाने की मांग करनेवाले हैं।

शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

गुना का सच


मित्रों, जब भी अपने देश में कोई महत्वपूर्ण चुनाव होनेवाले होते हैं विपक्षी दल जैसे पगला जाते हैं. आपको याद होगा कि जब २०१५ में बिहार विधानसभा के चुनाव होनेवाले थे तब विपक्ष दलों का रवैया क्या था? सारे वामपंथी और छद्मधर्मनिरपेक्षतावादी एक जुट हो गए थे और देश में असहिष्णुता का कथित वातावरण कायम हो जाने के नाम पर अवार्ड वापसी का जबरदस्त आन्दोलन चलाया गया था. रवीश कुमार जनता से उनकी जाति पूछते चल रहे थे और दावा कर रहे थे कि बिहार में बहार है तो वही अभिसार शर्मा जहानाबाद की स्थिति को कश्मीर से भी ज्यादा भयावह बता रहे थे.

मित्रों, जैसे ही चुनाव समाप्त हुआ अवार्ड वापसी आन्दोलन भी रूक गया. सारे छद्मधर्मनिरपेक्षतावादियों ने नीतीश कुमार की जीत पर अपनी-अपनी पीठ थपथपाई लेकिन जैसे ही २०१७ में नीतीश फिर से भाजपा के साथ आ गए बिहार में उनको बहार की जगह कुशासन और बर्बादी दिखने लगी. तात्पर्य यह कि ये लोग ऐसे लोग हैं जो किसी भी तरह मोदी को नीचा दिखाना चाहते हैं. इन लोगों की कोई कार्ययोजना नहीं है बस यही एकसूत्री एजेंडा है.

मित्रों, मैं यह नहीं कहता कि मध्य प्रदेश के गुना में पिछले दिनों एक गरीब अनुसूचित जाति से आनेवाले हिन्दू किसान परिवार के साथ जो हुआ वह उचित था. लेकिन ऐसे हुआ क्यों अगर हम इसकी जड़ में जाएँ तो पता चलता है कि इसके पीछे एक स्थानीय कांग्रेस नेता गब्बू पारदी का हाथ है जिसके धंधा सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा करके उस पर एससी जाति के लोगों से बंटाई करवाना है. उसने पिछले कई दशकों से ५० एकड़ से ज्यादा बेशकीमती सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा कर रखा है. आश्चर्य की बात है कि जिस पुलिस का डंडा राजकुमार अहिरवार पर जमकर चलता है उसी पुलिस का डंडा गब्बू पर क्यों नहीं चलता जबकि उसके ऊपर ४७ मुकदमें दर्ज हैं. क्या पुलिस का डंडा सिर्फ गरीब और लाचार लोगों के लिए है.

मित्रों, राजकुमार की बहन ने बताया कि एक साल तक भूमि खाली पड़ी रही, किसी ने काम शुरू नहीं किया। हमें गप्पू पारदी ने जमीन बटाई पर दी थी। उधर सरकारी कागजात बता रहे हैं कि इस भूमि से राजस्व विभाग ने वर्ष 2019 में ही कब्जा हटा दिया था। गप्पू पारदी को बेदखल कर दिया गया था। फिर उसने यह भूमि बंटाई पर कैसे दे दी? राजस्व विभाग का दावा है कि एक साल पहले ही उच्च शिक्षा विभाग को जमीन दी जा चुकी है तो अब तक काम क्यों शुरू नहीं किया गया। वहीं ठेकेदार राधेश्याम अग्रवाल का कहना है कि हमें अब तक काम करने के लिए जमीन ही नहीं मिली तो कैसे निर्माण होता? इसलिए फिर से जमीन खाली कराने के लिए पत्र लिखा था। सवाल यह भी उठता है कि पुलिस या प्रशासन या शिक्षा-विभाग ने तब जमीन पर कब्ज़ा क्यों नहीं करवाया जब मार्च-अप्रैल में खेत खाली था?

मित्रों, हम इससे पहले भी विकास दूबे मामले में पुलिस और अपराधियों का गठजोड़ देख चुके हैं. समस्या यह है कि गलत काम पुलिस करती है और उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है सरकार को. निचले स्तर पर हो क्या रहा है इससे राज्य सरकारें पूरी तरह अनभिज्ञ होती है और जब घटना के घटित हो जाने के बाद उसे पता चलता है तब काफी देर हो चुकी होती है. फिर तबादले, निलंबन वगैरह करके मामले की खानापूर्ति कर दी जाती है जबकि वास्तविकता यह है कि न तो तबादला और न ही निलंबन भ्रष्ट अधिकारियों-कर्मचारियों का सही ईलाज है बल्कि उनको बर्खास्त कर देना ही सही ईलाज है. जब तक सरकारें ऐसा नहीं करतीं कुछ भी नहीं बदलनेवाला. ऐसे ही गब्बू पारदी पैदा होते रहेंगे और ऐसे ही राजकुमार अहिरवार पिटते रहेंगे. और तब तक कांग्रेस जैसे भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुके दल जो गब्बू पारदी जैसे लोगों को खुलकर संरक्षण देती है ऐसी घटनाओं से चुनावों में लाभ उठाते रहेंगे.

मित्रों, मैं नहीं समझता कि इस दुखद घटना के लिए किसी भी तरह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दोषी है. उनके संज्ञान में जैसे ही मामला आया उन्होंने तत्काल जरूरी कदम उठाए. वैसे भी वे अपनी संवेदनशीलता के लिए जाने जाते हैं. हाँ, इतना जरुर है कि पुलिस सुधार को अब और टाला नहीं जा सकता क्योंकि वर्तमान भारत की पुलिस अंग्रेजों की पुलिस से भी ज्यादा दमनकारी हो गई है. रक्षक से भक्षक तो वो कई दशक पहले ही हो चुकी थी. साथ ही राज्यों की ख़ुफ़िया एजेंसियों को फिर से मजबूत बनाना होगा जिससे राज्य के मुखिया को राजधानी में बैठे-बैठे सबकुछ मालूम होता रहे.साथ ही तत्काल राजकुमार के परिवार को फसल की क्षति के लिए क्षतिपूर्ति मिलनी चाहिएऔरउसके परिवार पर से मुकदमा वापस लिया जाना चाहिए. हाँ,गब्बू पारदी को जरूर जेल भेजना चाहिए.

मित्रों, इस बीच खबर आ रही है कि उसी मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के ग्राम गढ़ी में रेत माफिया ने असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर (एएसआइ) को धमकाते हुए चांटा मारा और धक्का देकर जमीन पर पटक दिया। घटना का वीडियो वायरल होने के बाद मामला उजागर हुआ। वीडियो में दिख रहा है कि घटना के वक्त एक कांस्टेबल रेत माफिया के आगे गिड़गिड़ा दिखा रहा है। पिट रहे एएसआइ ने भी किसी तरह का प्रतिकार नहीं किया, बल्कि हाथ बांधकर और सिर झुकाकर रेत माफिया की धमकी व अपशब्द सुनते रहे। इसके बाद रेत माफिया ट्रैक्टर-ट्रॉलियों को ले गए। कितनी बड़ी विडंबना है कि पुलिस जिनके ऊपर कार्रवाई के लिए बनी है उनके आगे तो बेबस रहतीं हैं और गरीबों पर अत्याचार करती है।

बुधवार, 15 जुलाई 2020

हिन्दू भी धारण करें कृपाण

 
मित्रों, महाराष्ट्र के पालघर में दो साधुओं की पीट-पीटकर हत्या के मामले ने पूरे देश में हलचल मचा दी थी। अब ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश के मेरठ में आया है। यहां शिव मंदिर के साधु की पीट-पीटकर बेरहमी से हत्या कर दी गई है। हत्या का आरोप फिर से मुसलमानों पर लगा है। इधर साधु की हत्या के मामले ने तूल पकड़ा और उधर शव को सड़क पर रखकर प्रदर्शन शुरू हो गया। पुलिस ने कहा है कि आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है। घटना मेरठ के भावनपुर की है। अब्दुलापुर बाजार में एक शिव मंदिर हैं। बताया जा रहा है कि मंदिर में ही गांव के कांति प्रसाद की दुकान थी और वह मंदिर कमिटी के उपाध्यक्ष भी थे। वह मंदिर की साफ-सफाई के साथ पुजारी का काम भी देखते थे। बताया जा रहा है कि कांति गले में भगवा रंग का गमछा डालते थे और पीले रंग के कपड़े पहनते थे।
मित्रों, सोमवार को कांति गंगानगर में बिजली का बिल जमा करने गए थे। आरोप है कि लौटते समय ग्लोबल सिटी के पास गांव के ही अनस कुरैशी उर्फ जानलेवा ने कांति के भगवा गमछे को लेकर कथित धार्मिक टिप्पणी की और मजाक बनाया। अनस के मजाक करने का कांति ने विरोध किया, जिसके बाद दोनों के बीच बहस हो गई। आरोप है कि अनस ने कांति की सड़क पर ही जमकर पिटाई की और भाग गया। वहां से कांति किसी तरह गांव पहुंचे और अनस के घर जाकर उसकी हरकत की शिकायत की। कांति अनस के घर पर थे तभी पीछे से वह आ गया। आरोप है कि अनस ने एक बार फिर से अपने घरवालों के साथ मिलकर कांति की फिर से जमकर पिटाई की और वहां से बाइक लेकर भाग गया। कांति के परिजनों को जब उनकी पिटाई की सूचना मिली तो वे लोग उन्हें लेकर थाने पहुंचे। यहां उनकी हालत बिगड़ गई। घरवाले कांति को लेकर अस्पताल पहुंचे जहां मेडिकल कॉलेज में इलाज के दौरान कांति की मौत हो गई। कांति प्रसाद की तहरीर पर पुलिस ने अनस के खिलाफ धार्मिक टिप्पणी करने, मारपीट और जान से मारने की धमकी देने के मामले में एफआईआर दर्ज कर ली। मंगलवार को इलाज के दौरान कांति की मौत हो गई। साधु की मौत की सूचना पर कई हिंदू संगठन थाने पर पहुंचे और हंगामा करने लगे। मामला बढ़ने पर पुलिस ने अनस को गिरफ्तार कर लिया। एसओ संजय कुमार ने कहा कि अनस को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया है, अन्य आरोपियों की तलाश की जा रही है। तनाव को देखते हुए गांव में फोर्स तैनात कर दी गई है।
मित्रों, मैं पूछता हूँ कि आखिर कब तक यह सिलसिला चलता रहेगा? आखिर कब तक हम हिन्दू एकतरफ़ा तौर पर पिटते, कटते और मरते रहेंगे? पहले खबर आई कि हिन्दू मेवात से भाग रहे हैं या भाग चुके हैं फिर अलवर से खबर आने लगी. फिर बंगाल से खबर आई कि भाजपा विधायक को मार कर टांग दिया गया है. केरल की दशा भी किसी से छिपी हुई नहीं है. दिल्ली में डॉ. नारंग की घर में घुसकर हत्या कर दी जाती है. कहीं हिन्दू लड़की को एकतरफा प्यार में मार दिया जाता है तो कहीं उनके साथ एकल या सामूहिक बलात्कार होता है. कभी-कभी बलात्कार के बाद उनको मार भी दिया जाता है. लव जिहाद की शिकार लड़कियों की तो बात ही छोडिए. बलात्कार के अधिकतर मामलों में बलात्कारी मुसलमान और पीड़ित लड़कियां हिन्दू होती हैं. ऐसा लगता है जैसे हिंदुस्तान के हिन्दू पाकिस्तान के हिन्दुओं की तरह ही इंसान न होकर भेड़-बकरियां हैं. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? मैं समझता हूँ कि ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि हिन्दू हर घडी निहत्था रहता है और मुसलमान हमेशा हथियारों से लैस होते हैं. ऐसा देखा गया है कि अधिकतर हिन्दुओं को मुसलमान चाकुओं से गोदकर मारते हैं. ऐसे में अगर हिन्दू भी सिखों की तरह कृपाण धारण करने लगें तो उनके ऊपर होनेवाले ज्यादातर हमले अपने आप रूक जाएँगे. इस दिशा में हिन्दू धर्म के धार्मिक नेताओं को आगे आना चाहिए, पहल करनी चाहिए और हिन्दू धर्म में इस नई परंपरा की शुरुआत करनी चाहिए. लद्दाख की पहाड़ियों से भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी घोषणा कर चुके हैं कि वीर भोग्या वसुंधरा इसलिए मुझे नहीं लगता कि केंद्र सरकार इस नई परंपरा में किसी तरह की बाधा डालेगी.
मित्रों, भारत में हिन्दू बनकर जीना है तो और कोई उपाय नहीं है. हमें अपने धर्म को एक लड़ाकू कौम में बदलना होगा अन्यथा हम कहाँ-कहाँ से भागेंगे और क्यों भागेंगे? हिंदुस्तान पर पहला अधिकार हिन्दुओं का है न कि अरब देश से आए धर्म का. हिन्दू इस पुण्यभूमि में सनातन काल से रहते आ रहे हैं. हम मुसलमानों को १९४७ में अलग देश भी दे चुके हैं जहाँ हिन्दू एक मंदिर तक नहीं बना सकता. फिर हिन्दुओं को अगर हिंदुस्तान से भागना पड़ा तो जाएँगे कहाँ? हिन्दुओं का कोई दूसरा देश तो है नहीं. इसलिए जैसे भारतीय सेना सीमाओं पर एक-एक ईंच जमीन के लिए लडती है हिन्दुओं को भी अपनी एक-एक ईंच जमीन की रक्षा करनी पड़ेगी और पलायन करना और डरकर जीना बंद करना पड़ेगा.

शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

कब होगा अपराध के विकास का अंत?


मित्रों, यह बड़े ही हर्ष का विषय है कि यूपी पुलिस के ८ जवानों की हत्या करनेवाले विकास दूबे पुलिस मुठभेड़ में मारा गया है. कल जबसे विकास दूबे ने उज्जैन के महाकाल मंदिर में आत्मसमर्पण किया था तभी से ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही थी उसको मुठभेड़ में मार दिया जाएगा और हुआ भी वही. यहाँ हम बता दें कि १९९० से ही विकास दूबे की कानपुर ईलाके में तूती बोलती थी. कानपुर में विकास दूबे ही अदालत भी था, पुलिस भी था और सरकार भी था.

मित्रों, दरअसल जो राजनेता किसी अपराधी को संरक्षण देकर बढ़ावा देते हैं जब वो उनके लिए ही खतरनाक बनने लगता है तो राजनेता खुद को बचाने के लिए उसको मरवा देते हैं. कदाचित विकास दूबे के साथ भी यही हुआ. १९९० में जब वो छुटभैया हुआ करता था तभी से लगभग सारे दलों ने उसको हाथोहाथ लिया. उसकी हनक फिर इतनी बढ़ गई कि जब १९९१ में यूपी पुलिस के तेज़ तर्रार इंस्पेक्टर त्रिपुरारी पांडे ने उसे गिरफ्तार किया तब स्वयं तत्कालीन विधान सभा अध्यक्ष हरि किशन श्रीवास्तव ने एसएसपी को फोन करके उसे छुडवा लिया था. फिर तो विकास दूबे का मनोबल इस कदर बढ़ा कि साल 2001 में उसने एक पुलिस थाने में घुसकर हरिकिशन श्रीवास्तव के खिलाफ १९९६ में चौबेपुर से भाजपा उम्मीदवार रह चुके भाजपा जिलाध्यक्ष और दर्जा प्राप्त मंत्री संतोष शुक्ला की गोली मारकर हत्या कर दी लेकिन कोर्ट में सुनवाई के दौरान घटना के गवाह 25 पुलिसकर्मी बयानों से पलट गए। इससे उसे सजा नहीं हो सकी थी। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उस समय वर्तमान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. बाद में सरकार भी बदली व मायावती और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने लेकिन विकास दूबे के खिलाफ किसी भी सरकार ने कोर्ट में अपील नहीं की.

मित्रों, विदित हो कि विकास दुबे और उसके साथियों ने संतोष शुक्ला को बीच रास्ते में रोक लिया था और उसके काफिले पर हमला कर दिया था। उस दौरान संतोष शुक्ला ने दुबे और उसके साथियों से मुकाबला करने का प्रयास किया, लेकिन दूबे ने उस पर रॉड से हमला कर दिया। हमले में घायल होने के बाद शुक्ला कानपुर देहात के शिवली पुलिस थाने में घुस गए, लेकिन किसी भी पुलिसकर्मी ने उन्हें नहीं बचाया। इस दौरान विकास दूबे ने यह दिखाते हुए कि उसे पुलिस का कोई डर नहीं है, वह भी थाने में घुस गया और पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। इसके बाद भी पुलिस उसे नहीं पकड़ पाई और उसने चार महीने बाद आत्मसमर्पण कर दिया और बाद में बरी भी हो गया जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं. दूबे के "आत्मसमर्पण" को याद करते हुए स्वर्गीय संतोष शुक्ला के भाई मनोज ने बताया कि दूबे ने राजनेताओं के साथ कोर्ट में प्रवेश किया था। इससे वह भौचक्के रह गए, लेकिन उन्हें सबसे बड़ा झटका उस समय लगा, जब मामले के जांच अधिकारी सहित 25 पुलिसकर्मियों ने कोर्ट में अपने बयान बदल दिए। इसके बाद उन्होंने तत्कालीन कानपुर देहात के जिला मजिस्ट्रेट और विशेष अभियोजन अधिकारी (SPO) से भी मुलाकात की, लेकिन किसी ने मदद नहीं की।
मित्रों, मैं अपने पिछले आलेख में भी कह चुका हूँ कि विकास दूबे कांड ने तंत्र के अपराधीकरण को पूरी तरह से उजागर करके रख दिया है. सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे भारत की पुलिस भ्रष्ट है और रक्षक के स्थान पर भक्षक बन गई है. खाकी और खादी ने मिलकर ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि जनता का तंत्र से विश्वास ही उठता जा रहा है. बार-बार भीड़ द्वारा अपराधियों की हत्या के पीछे भी यह अविश्वास ही है. ऐसे में सवाल उठता है कि विकास दूबे के फलने-फूलने के पीछे किन लोगों का हाथ है? उत्तर प्रदेश सहित देश के लगभग सभी राज्यों के सभी जिलों में ऐसे बाहुबली हैं जो या तो खुद ही राजनीति में हैं या फिर अपराधियों को संरक्षण देते हैं. विकास दूबे के मामले में हमने देखा कि पुलिस में भी ऐसे बिके हुए लोग हैं जो नौकरी तो सरकार की करते हैं लेकिन काम अपराधियों के लिए करते हैं. यही कारण है कि शरीफ लोग आज थानों में जाने तक से डरते हैं. इसके साथ ही हमारी न्यायपालिका और अधिवक्ता भी विकास दूबे के विकास के लिए जिम्मेदार हैं. इन सबके अलावे अगर कोई और दोषी है तो वो है हमारा समाज जो विकास दूबे जैसे घिनौने लोगों को अपना आदर्श मानता है जाति और धर्म के नाम पर. क्या कारण है कि शहीद देवेन्द्र मिश्र की विकास दूबे द्वारा हत्या पर आज कोई भी ब्राह्मण आवाज नहीं उठा रहा जबकि विकास दूबे गिरोह पर कार्रवाई को ब्राह्मण ब्राह्मण विरोधी कृत्य बता रहे हैं? क्या कारण है कि शहीद देवेन्द्र मिश्र हमारे लिए आदर्श न होकर दुर्दांत विकास दूबे हमारा आदर्श बन गया है?
मित्रों, इसके साथ ही उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार पर भी अब बड़ी जिम्मेदारी आन पड़ी है. सरकार को चाहिए कि बिना जाति, धर्म और वोट बैंक की परवा किए पूरे उत्तर प्रदेश में जितने भी विकास दूबे हैं उन सबका चुन-चुनकर खात्मा करे. साथ ही नौकरशाही और राजनीति में छिपे उन सभी लोगों को भी उनके उचित स्थानों तक पहुँचाया जाए जो ऐसे अपराधियों को संरक्षण देते हैं. अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो ऐसे ही उत्तर प्रदेश में अपराध का विकास होता रहेगा, ऐसे ही अपराधी आते रहेंगे जिनके हाथ न केवल ईमानदार पुलिसवालों की गिरेबानों तक पहुंचेंगे बल्कि जो बेधड़क थाने में घुसकर हत्याएं करेंगे.

गुरुवार, 9 जुलाई 2020

कोरोना के प्रति लापरवाही खतरनाक



मित्रों, आजादी के बाद से ही हम भारतियों में एक अजीबोगरीब प्रवृत्ति ने जन्म लिया है. हम हर काम के लिए सरकार की तरफ देखते हैं. मानो हमारा कोई कर्त्तव्य ही नहीं है. नाली गन्दी है तो सरकार साथ कराए, बांध टूट रहा है तो सरकार मरम्मत करवाए, सड़क में छोटा सा गड्ढा है तो सरकार भरवाए. यहाँ तक कि हम घर में एक डंडा तक नहीं रखते और जब हमारे साथ कोई अपराधिक घटना घट जाती है तो सरकार को कोसते हैं.

मित्रों, हमारी केंद्र सरकार ने कोरोना को लेकर तभी से कदम उठाने शुरू कर दिए  थे जब यह हमारे देश में आया भी नहीं था. फिर भी अहतियातन कदम उठाते हुए सरकार ने लॉक डाउन की घोषणा की जो चार चरणों में २४ मार्च से पूरे मई तक चला. इस दौरान उत्पादन और विक्रय पूरी तरह से बंद होने के कारण अर्थव्यवस्था की हालत ख़राब होने लगी. साथ ही मजदूरों को घर पहुँचाने की समस्या भी खडी हो गयी. बहुत-से मजदूरों को तो हजारों किलो मीटर पैदल भी चलना पड़ा. अंततः सरकार को मजबूरन १ जून से अनलॉक को प्रक्रिया शुरू करनी पड़ी और धीरे-धीरे शिक्षण संस्थानों, मॉल और सिनेमा घरों को छोड़कर सबकुछ खोल दिया गया लेकिन सरकार की इस अपील के साथ कि लॉक डाउन ख़त्म हुआ है कोरोना ख़त्म नहीं हुआ इसलिए पहले की तरह ही सावधानियां बरती जाए जिसमें बेवजह घर से नहीं निकलना, दो गज की दूरी बनाए रखना, मास्क का प्रयोग करना और बार-बार साबुन से हाथ धोना शामिल है. लेकिन ऐसा देखा गया कि अन लॉक की प्रक्रिया शुरू होते ही लोग कोरोना को लेकर लापरवाह हो गए. यहाँ तक कि पुलिसकर्मी भी दो गज की दूरी को लेकर लापरवाही बरतने लगे जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि जिन ईलाकों में अभी तक इस वैश्विक बीमारी का प्रकोप कम था वहां भी यह बम की तरह फूटने लगा.

मित्रों, बिहार में तो स्थिति इतनी ख़राब हो गई कि आज से बिहार के पांच जिलों में आज से फिर से लॉक डाउन लगाना पड़ रहा है. देश के बांकी राज्यों में भी कमोबेश यही हालात है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कब हम अपनी जिम्मेदारियों को समझेंगे? क्या सरकार आकर हमें बसों और ऑटो में बिठाएगी? क्या प्रधानमंत्री अपने हाथों से हमें आकर मास्क पहनाएंगे? क्या सरकार आकर हमारे हाथ साबुन से धुलवाएगी? क्या हम खुद से इतना भी नहीं कर सकते? क्या हम गोद के बच्चे हैं? अगर हाँ, तो हम कब बड़े होंगे?

बुधवार, 8 जुलाई 2020

विकास दूबे कांड तंत्र में फैले भ्रष्टाचार का परिचायक


मित्रों, जबसे उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार आई है तभी से उत्तर प्रदेश पुलिस ने अपराध और अपराधियों के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई हुई है। पहले रोमियो स्क्वायड और फिर मुठभेड़ों की झड़ी. कहा जाता है कि स्थिति ऐसी हो गई है कि अपराधी कोर्ट में जमानत रद्द करने की अर्जी देने लगे। मीडिया ऐसा प्रदर्शित करने लगी मानो उत्तर प्रदेश में रातों रात राम राज्य आ गया.

मित्रों, जय-जयकार करने में जुटी मीडिया कदाचित यह भूल गयी थी कि जिस तरह देश के बांकी राज्यों की पुलिस भारत की सबसे भ्रष्ट संगठन है उसी तरह उत्तर प्रदेश की पुलिस भी आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हुई है। सारी सख्तियाँ और कार्रवाई तो ऊपरी दिखावा मात्र है भीतर तो उसी तरह भ्रष्टाचार की गंगा बह रही है जैसे पहले बह रही थी. माना कि गंगोत्री साफ है लेकिन आगे जो गंदे नाले गंगा में मिल रहे हैं उनका क्या.

मित्रों, अचानक घटी कानपुर की एकतरफा मुठभेड़ की घटना ने मखमली कालीन के नीचे छिपी उसी गंदगी को उजागर करके रख दिया है। यह कितना दुखद है कि शहीद डीएसपी देवेंद्र मिश्र लगातार दारोगा विनय तिवारी  के खिलाफ विकास दूबे का सहायक होने के आरोप लगाते हुए एस एस पी को पत्र लिखते रहे लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। यहाँ तक कि पत्र को गायब भी कर दिया गया. विकास दूबे की गिरफ्तारी के लिए जाते समय भी डीएसपी ने एसएसपी से अतिरिक्त पुलिस बल की मांग की जो उन्हें उपलब्ध नहीं करवाई गई। पुलिस जब तक विकास दूबे के घर पहुंचती उससे कई घंटे पहले दारोगा और कई अन्य उसके दरबारी पुलिसकर्मियों ने फोन कर दूबे को सचेत कर दिया था। जाहिर है कानपुर पुलिस में कई ऐसे अधिकारी और सिपाही हैं जो वेतन तो सरकार से पाते हैं लेकिन ड्यूटी विकास दूबे की करते हैं।

मित्रों, अब जबकि यूपी पुलिस के आठ जवान शहीद हो चुके हैं शासन-प्रशासन लाठी पीट रहा है। लेकिन उससे होगा क्या? क्या यूपी पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा? क्या सारे भ्रष्ट अधिकारी अचानक सुधर जाएँगे? नहीं, कदापि नहीं. इसके लिए पूरे तंत्र की पूरी ओवरहौलिंग करनी पड़ेगी. इस देश में जबकि हर पद पर भ्रष्टाचारी बैठे हैं ऐसे में क्या योगी इस दिशा में सफल हो पाएँगे? इन तमाम सवालों के बावजूद आशा की जानी चाहिए कि उत्तर प्रदेश सरकार इस बार पुलिस-अपराधी गठजोड़ और पुलिसिया भ्रष्टाचार को तोड़ने और समाप्त करने की दिशा में निर्णायक कदम उठायेगी। साथ ही उन राजनीतिज्ञों के खिलाफ भी दंडात्मक कार्रवाई करेगी जो अपराधियों को संरक्षण देते हैं भले ही वह नेता भाजपा का हो और कितना भी शक्तिशाली हो। अन्यथा आगे भी इसी तरह ईमानदार अधिकारी और सिपाही शहीद होते रहेंगे और भ्रष्ट अधिकारियों की मौज रहेगी।

मंगलवार, 7 जुलाई 2020

चीन से सावधानी आगे भी जरूरी


मित्रों, इस समय भारत-चीन सीमा से जो  समाचार प्राप्त हो रहे हैं उससे पूरे भारत में खुशी की लहर दौड़ रही है। भारत के दृढ़ रूख के चलते चीन को यह समझ में आ गया है कि युद्ध से उसे कहीं ज्यादा नुकसान उठाना पड़ेगा। भारत-चीन तनाव के समय न सिर्फ भारत सरकार ने चीन को स्पष्ट संकेत दिया बल्कि भारत की सामान्य जनता ने भी चट्टानी एकता का प्रदर्शन किया। हालांकि चीन ने अपनी स्थिति से पीछे हटना शुरू कर दिया है लेकिन भारत को आगे भी सचेत रहना चाहिए क्योंकि धोखा चीन के चरित्र में है। १९६२ की गर्मियों में भी चीन भारतीय सीमा से पीछे हटा था। तब भी सरकार के पक्ष में मीडिया कसीदे गढ़ रही थी लेकिन जैसे ही ठंड शुरू हुई चीन ने हमला कर दिया और भारत सरकार सन्न रह गई।
मित्रों, हम जानते हैं कि तब भारत के पास सीमापार की स्थिति बताने वाले उपकरण नहीं थे लेकिन आज भारत के पास खुद के ऐसे उपग्रह हैं। साथ ही उसकी सहायता के लिए अमेरिका, इजरायल, जापान, फ्रांस आदि देश भी हैं। जहां सवाल राष्ट्रीय सुरक्षा का हो वहां किसी भी तरह की कोताही खतरनाक हो सकती है। फिर चीन का तो उसके सारे पड़ोसियों के साथ सीमा-विवाद है। १९७९ में वियतनाम जैसे छोटे देश के हाथों करारी हार झेलने वाला चीन खुद को एशिया का चौधरी समझने लगा है और वह यह अच्छी तरह जानता है कि उसके मार्ग का सबसे बड़ा कांटा भारत है इसलिए भी भारत को ज्यादा सचेत रहने की जरूरत है न सिर्फ सीमा पर बल्कि आर्थिक मोर्चे पर भी। भारत को जल्द से जल्द चीन पर अपनी निर्भरता समाप्त करनी होगी क्योंकि भारत और चीन के बीच व्यापार में व्यापार संतुलन एकतरफा तरीके से चीन के पक्ष में है। अगर एक रूपए का व्यापार दोनों देशों के बीच होता है तो चीन हमारे हाथों बारह आने का सामान बेचता है और हम उसको मात्र चार आने का सामान बेच पाते हैं।
मित्रों, इतके साथ ही भारत ने इस समय जो रक्षा समझौते रूस,फ़्रांस और अमेरिका से किए हैंउनको निर्धारित समय पर पूरा करने की दिशा में कोई भी शिथिलता नहीं बरती जानी चाहिए. कोशिश यही होनी चाहिए कि शीघ्रातिशीघ्र हमें वो विमान और मिसाइलें प्राप्त हो जाएँ जो हमारी सुरक्षा और चीन को टक्कर देने के लिए जरूरी हैं. साथ ही भारतीय सैनिकों को अब चीन की सीमा पर भी सालोंभर पूरी तैयारी के साथ जमा रहना पड़ेगा अन्यथा चीन कभी भी भारत के साथ कारगिल जैसे खेल कर सकता है और तब भारत को काफी परेशानी होगी. इसके अलावे भारत-चीन सीमा पर चल रहे सड़क और हवाई अड्डों के निर्माण में भी तेजी लानी होगी.

शनिवार, 4 जुलाई 2020

प्रधानमंत्री की लेह यात्रा के बाद गेंद चीन के पाले में


मित्रों, ७० साल की उम्र में भी भारत केप्रधानमंत्री कब क्या कर जाएँ कोई नहीं जानता. कल पूरी दुनिया को हतप्रभ करते हुए पीएम अचानक लद्दाख की राजधानी लेह पहुँच गए और चीन के खिलाफ अग्रिम मोर्चों पर तैनात सैनिकों का मनोबल बढ़ानेवाला जबरदस्त भाषण दिया. प्रधानमंत्री ने चीन को स्पष्ट कर दिया कि भारत अब एक ईंच भी जमीन उसे नहीं देनेवाला भले ही उसे मानव इतिहास का भीषणतम युद्ध ही क्यों न लड़ना पड़े. प्रधानमंत्री ने चीन का नाम लिए बिना कहा कि आज का युग विस्तारवाद का युग नहीं है बल्कि विकासवाद का युग है. प्रधानमंत्री ने अपने परम ओजस्वी भाषण में कहा कि फिर भी अगर कोई देश इस सच्चाई को नहीं समझता है तो उसका विनाश निश्चित है.
मित्रों, भारत के ७० साल के जवान प्रधानमंत्री ने अपने २६ मिनट लम्बे भाषण में कहा कि भारत की शांतिपूर्ण नीति को भारत की कमजोरी नहीं समझना चाहिए क्योंकि भारत के जो श्रीकृष्ण शांतिकाल में बांसुरी की मनमोहक धुन से पूरी दुनिया को मोहित करने की क्षमता रखते हैं युद्ध काल में वही श्रीकृष्ण अपने चक्र सुदर्शन से शत्रुओं का सम्पूर्ण विनाश करना भी जानते हैं. प्रधानमंत्री ने कहा कि कमजोर देश शांति की स्थापना नहीं कर सकते क्योंकि धरती वीरों के भोगने के लिए बनी है. प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत आज जल, थल, नभ और अन्तरिक्ष में अपनी ताकत अगर बढा रहा है तो इसके पीछे लक्ष्य शांति ही है. इतिहास गवाह है कि भारत ने कभी किसी भी देश पर आक्रमण नहीं किया भले ही वो कितना छोटा देश हो. इस अवसर पर सीमा पर महिला सैनिकों की तैनाती को देखकर रोमांचित प्रधानमत्री ने कहा कि मैं अपने सामने महिला सैनिक भी देख रहा हूं। सीमा पर जंग के हालात में यह देखना प्रेरणादायक है।
मित्रों, भारत के प्रधानमंत्री ने वंदेमातरम् और भारतमाता की जय के नारों के बीच कहा कि आज जिस कठिन परिस्थिति में आप सैनिक जिस तरह देश की हिफाजत कर रहे हैं, उसका मुकाबला पूरे विश्व में कोई नहीं कर सकता। आपका साहस उस ऊंचाई से भी ऊंचा है, जहां आप तैनात हैं। उन्होंने कहा कि लेह-लद्दाख से लेकर कारगिल और सियाचिन तक, रेंजागला की बर्फीली चोटियों से लेकर गलवान घाटी के ठन्डे पानी की धारा तक, हर छोटी, हर पहाड़, हर कंकड़-पत्थर, हर जर्रा-जर्रा भारतीय सैनिकों के अद्भुत पराक्रम की गवाही दे रहे हैं. इसके बाद प्रधानमंत्री निमू गए जहाँ उन्होंने १५ जून को चीन द्वारा धोखे से किए गए हमले में घायल जवानों से मुलाकात की. इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने सैनिकों से कहा कि आप जो सेवा करते हैं उसका मुकाबला पूरे विश्व में कोई नहीं कर सकता है।आपका साहस उस ऊंचाई से भी ऊंचा जहां आप तैनात हैं। आपकी भुजाएं उन चट्टानों से भी मज़बूत है,आज आपके बीच आकर मैं इसे महसूस कर रहा हूं.
मित्रों, इस तरह भारत के यशस्वी और परम तेजस्वी प्रधानमंत्री ने आक्रान्ता चीन और शेष दुनिया को भारत की मंशा बता दी है. उन्होंने बता दिया है कि यह १९६२ के नहीं २०२० का भारत है और आज के भारत ने भारत ने कुत्तों के आगे रोटी फेंकना बंद कर दिया है. अब यह फैसला चीन को करना है कि वो विकास चाहता है या अपना सम्पूर्ण विनाश. भारत के वीरों का समर्पण और अतुल्य पराक्रम वह १५ जून को देख चुका है जब भारत के निहत्थे सैनिकों ने चीन के हथियारबंद सैनिकों की धोखेबाजी का करारा जवाब देते हुए चीन के चार दर्जन से भी ज्यादा सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था. यह पूरी दुनिया प्रथम विश्वयुद्ध के समय से ही जानती है कि जमीनी लडाई में भारतीय सैनिक लाजवाब हैं. बस रणभेरी बजने की देरी है. युद्ध का बिगुल बजते ही भारत के वीर चीन में ऐसी तबाही मचाएँगे कि चीन का महाशक्ति होने का अहंकार उसकी खुद की मिटटी में मिलकर चकनाचूर हो जाएगा.