कभी बिहार के नीति-नियंता रहे लालू प्रसाद ने बिहार के बँटवारे के समय कहा था कि अब बिहार में सिर्फ तीन ही चीजें बचेंगी आलू, लालू और बालू. सत्ता सुख में डूबे लालू के दिमाग में शायद यह बात कहीं भी नहीं थी कि समय इतिहास रचने का अवसर किसी भी व्यक्ति को बार-बार नहीं देता. एक राज्य की तक़दीर बदलने के लिए १५ साल का वक़्त कोई कम नहीं होता.
अब जब भाग्य उनका साथ नहीं दे रहा है तो वे झूठ-सच का सहारा लेने को उतारू हैं. नीतिश जी को भी सत्ता में आये चार साल पूरे हो चुके हैं और चुनाव की आहट धीरे-धीरे निकट आती सुनाई दे रही है. बिहार ने इन चार सालों में बहुत-कुछ देखा है, बहुत कुछ बदला भी है लेकिन दुर्भाग्यवश आज भी बिहार हर मामले में भारत के राज्यों में नीचे से प्रथम है. ऐसा क्यों है? एक होशियार माने जानेवाले नेता के हाथों में नेतृत्व होने के बावजूद स्थितियां बदलने के बाद भी आकडे क्यों नहीं बदले? मेरा मानना है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि राज्य सरकार की नीयत के बारे में तो मैं कह नहीं सकता लेकिन निश्चित रूप से नीति ठीक नहीं रही. बात वह शिक्षा में सर्वांगीण सुधार की करती रही लेकिन बहाली में निर्धारित प्रक्रिया और मानदंडों का पालन सुनिश्चित नहीं करा पायी. इसी तरह नरेगा, आंगनबाडी आदि योजनायें बिहार में पूरी तरह विफल सिद्ध हुई. अब स्थिति सांप-छछूंदर वाली है. इन कर्मियों को न तो वह हटा ही सकती है और न ही रख ही सकती है. हटाने से भी जनता में नाराज़गी उत्पन्न होगी और न हटाने से भी. एक कालोनी में नालियां बनाने में ही चार साल ख़त्म हो गए और काम अभी भी ६० प्रतिशत के लगभग ही हुआ है. इन बातों से और बार-बार पुलिस द्वारा जुल्म ढाये जाने की खबरों से तो यही जाहिर होता है कि सरकार स्थानीय निकायों और प्रशासनिक अधिकारियों पर नियंत्रण नहीं रख पाई और जनादेश से मिले बहुमूल्य अवसर को गँवा बैठी. अब आनेवाले चुनाव में क्या होगा कोई भी इसका अनुमान नहीं लगा सकता.
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