७३ वें संविधान संशोधन द्वारा जब पंचायती राज विधेयक पारित किया गया तब कहा गया कि इससे
सत्ता का विकेंद्रीकरण होगा। परन्तु व्यवहार में ऐसा देखा जा रहा है कि चाहे सत्ता का विकेंद्रीकरण भले ही नहीं हुआ हो भ्रष्टाचार का विकेंद्रीकरण जरूर हो गया है। बिहार के आज ८ अक्टूबर २००९ के सारे अख़बार पंचायतो में हो रहे घपले-घोटालों की खबरों से भरे पड़े हैं। मैं स्वयं देख रहा हूँ कि ९० प्रतिशत तक दी गयी राशि पंचायती राज प्रतिनिधियों कि जेब में चली जा रही है। मैं पंचायती राज का विरोधी नहीं हूँ लेकिन दी गई राशि का सदुपयोग हो रहा है या दुरूपयोग इसकी निगरानी करेगा कौन? बिना समुचित निगरानी की व्यवस्था किए भारी मात्रा में धन थमा देना और तेज विकास की उम्मीद करना दिन में सपना देखना है। अभी भी देर नहीं हुई है संसद को इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए निगरानी की व्यवस्था करनी चाहिए।
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