शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009
परेशानी का पर्याय भारतीय रेल
अभी कुछ ही समय पहले की बात है जब १३ जनवरी, २००९ को भारत के तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने जापानी बुल्लेट ट्रेन पर सवारी की घोषणा की कि भारत में भी बुल्लेट ट्रेन चलायी जायेगी.एक उम्मीद बनी मन में. लेकिन इस मुंबई-पुणे-अहमदाबाद बुल्लेट ट्रेन परियोजना के लिए अनुमानित ३,५५,३०० करोड़ रूपयों का इंतजाम कहाँ से होगा अब तक एक यक्ष-प्रश्न बना हुआ है. मन इसीलिए यह संदेह भी उत्पन्न होता है कि यह घोषणा कहीं राजनीतिक लफ्फेबाजी भर तो नहीं थी. वैसे भी अब लालू रेल मंत्री नहीं हैं. अटलजी की सरकार ने अधोसंरचना में सुधार को जिस तरह प्राथमिकता के आधार पर लिया था और जोर-शोर से काम शुरू किया था. मनमोहन सरकार में न तो जोर दिखाई दे रहा है और न ही शोर ही सुनाई दे रहा है. वक़्त मानों ठहर गया है और ठहर गया है भारत का विकास (इंडिया का नहीं). मैं अक्सर प्रत्येक भारतवासी की ओर से एक सपना देखा करता हूँ की मैं तीन-चार घन्टे में पटना से दिल्ली पहुँच जाऊँगा और अपना काम निपटाकर शाम में घर लौट भी आऊंगा. किसी भी देश के विकास का पहला कदम अधोसंरचना का विकास ही होता है. बिजली, पानी और यातायात की सुचारू व्यवस्था किये बिना किसी भी देश का विकास संभव नहीं है. जहाँ तक भारत की बात है तो कण-कण में व्याप्त भ्रष्टाचार को मिटाए बिना ऐसा हो नहीं सकता. इलाज है भ्रष्टचार के लिए मृत्युदंड की व्यवस्था की जाये और न्यायपालिका, व्यवस्थापिका और कार्यपालिका में व्यापक पैमाने पर सुधार किया जाये.अंत में मैं आपसे पूछता हूँ कि सिर्फ बुल्लेट ट्रेन चला देने से क्या भारत विकसित देशों की श्रेणी में आ जायेगा? बिलकुल भी नहीं इसके लिए तो बदलना पड़ेगा भारतीयों को अपनी नीति और नीयत को और मिटाना पड़ेगा फर्क कथनी और करनी का.
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