बिहार के मुख्यमंत्री एक वैद्य के बेटे हैं और आयुर्वेद का कहना है कि अति सर्वत्र वर्जयेत। हर चीज की एक सीमा होती है। लालू-राबड़ी शासन में जहाँ प्रशासन को जन प्रतिनिधियों के समक्ष बौना बनाकर रखा गया, वहीं नीतिश ने सूत्र को ही पूरी तरह पलट दिया। कहने का मतलब यह कि अब प्रशासनिक अधिकारियों को पूरी छूट दे दी गयी। जनता के लिए न तो वो ठीक था न यह ठीक है। दोनों ही स्थितियां अतिवाद से प्रेरित हैं। अब स्थिति ऐसी है कि मुख्यमंत्री बोलते रहते हैं और अधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। वर्तमान शासन में उनका व्यवहार निरंकुश सामंतों जैसा हो गया है और वे जब-तब मानवाधिकारों का उल्लंघन करने से भी नहीं चूकते।
मैं दो मामले आपके सामने पेश करना चाहूँगा- पहला मामला हाजीपुर से सम्बंधित है। २८ मई २००८ को स्थानीय गाँधी चौक पर सुनयना देवी नाम को एक महिला लीची बेच रही थी तभी ट्रैफिक हवालदार लक्ष्मण यादव ने उससे २०० लीची खरीदी और बिना पैसे दिए ही जाने लगा।इसका सभी फ़ुट पाथी दूकानदारों ने विरोध किया। बाद में उनका एक प्रतिनिधिमंडल एस पी पारसनाथ से मिलने भी गया लेकिन भेट नहीं हो सकी। बाद में सुनयना देवी और उसके एक निकट सम्बन्धी नरेश साह को झूठे मुक़दमे (मुकदमा सं २८९.०८) में फंसा दिया गया और नरेश साह को स्वास्थ्य थी नहीं होने पर भी गिरफ्तार कर लिया गया और जमकर पीटा गया जिससे उसकी मौत हो गयी। पुलिसिया सनक यहीं तक नहीं रुकी लाश को परिजनों को देने के बजाये गंगा में फेंक दिया गया। यहाँ तक कि पीड़िता के राज्य मानवाधिकार आयोग में जाने और मानवाधिकार आयोग से जवाब-तलब किए जाने के बाद भी हवलदार पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी।
दूसरी घटना ताजी है। अभी कल १५ तारिख की ही बात है। छपरा के पुलिस लाईन के पास राकेश नाम का एक युवक ठेले पर अंडा बेचता है। छपरा पुलिस के कुछ जवान उधार में अंडा देने की जिद करने लगे। धनतेरस का वास्ता देकर उसने मना कर दिया। नाराज पुलिस कर्मियों का कहर गरीब राकेश पर टूटा और उन्होंने ठेला उलटकर सारे अंडे फोड़ डाले और जमकर पीटा। नाराज होकर स्थानीय निवासियों ने छपरा-सोनपुर मार्ग एन. एच १९ को जाम कर दिया। बाद में इंसपेक्टर के आश्वासन के बाद जाम हटा लिया गया। अब देखना है कि इस मामले में कोई कार्रवाई होती है कि नहीं या मामला फाइलों में उलझकर रह जाएगा।
दो उदाहरण बिहार की वस्तु स्थिति की बानगी भर हैं। पहले जहाँ खादीवाले अंडे और लीची मुफ्त में उठाकर चल देते थे अब वही काम खाकी वाले कर रहे हैं। नीतिश जनता दरबार लगा रहे हैं लेकिन इन जनता दरबारों (डी एम द्वारा लगायेजानेवाले दरबारों सहित) से जनता को कोई खास लाभ इसलिए मिलता नहीं दीखता क्योंकि अधिकारियों की मानसिकता वही पुरानीवाली बनी हुई है। सरकारी तंत्र सी एम और डी एम के आदेशों को भी फाईलों में उलझाकर रख दे रहा है और जनता मूकदर्शक बनी हुई है। लेकिन चुनाव बहुत नजदीक है और राज्य सरकार को बेलगाम अधिकारियों पर जल्दी ही नियंत्रण पाना होगा अन्यथा जनता तो अपना जनादेश सुना ही देगी।
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