सोमवार, 12 अक्टूबर 2009

गाँधी अगर आज कहीं से आ जायें

गाँधी जयंती के दिन से ही मेरे मन में एक सवाल उठ रहा है कि अगर आज महात्मा गाँधी कहीं से आ जाते तो उनकी क्या स्थिति होती और वे क्या करते? यह तो निश्चित है कि वे आज के भारत को देखकर खुश नहीं होते। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने तो क्षमा करना बापू तुम हमको वचन भंग के हम अपराधी कविता के द्वारा देश के हालत के लिए बापू से पहले ही माफ़ी भी मांग ली है। तो क्या बापू ने आत्महत्या कर ली होती? कदापि नहीं तब फ़िर उनके सामने क्या विकल्प थे? जहाँ तक मेरी कल्पना शक्ति की पहुँच है मुझे लगता है कि गाँधी ने आन्दोलन छेड़ दिया होता। उनकी मुख्य मांगें कुछ इस तरह होती-
इस संविधान में संशोधन कर इसमे जो भी खामियां दिखाई दे रही हैं उन्हें दूर किया जाए। जैसे वक़्त बीतने के साथ स्थापित हुए अभिसमयों को संहिताबद्ध किया जाए, विधान मंडलों के विशेषाधिकारों का संहिताकरण किया जाए, निदेशक तत्वों को क्रियान्वित किया जाए, राज्यों पर केन्द्र के बढ़ते नियंत्रण की प्रवृत्ति को रोका जाए, राज्यों को पर्याप्त वित्तीय अधिकार दिया जाए, न्यायपालिका को जवाबदेह बनाया जाए, अनुच्छेद ३७० को समाप्त किया जाए।
न्यापालिका, विधायिका और कार्यपालिका से भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त किया जाए। जनता द्वारा दिए गए कर
को सही तरीके से, सही जगह पर खर्च होना सुनिश्चित किया जाए।
शराब के उत्पादन और विक्रय को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया जाए।
तम्बाकू की खेती और प्रयोग को रोक दिया जाए।
भंग, गांजा, अफीम आदि मादक पदार्थों की खेती और उपयोग पर रोक लगा दी जाए।
जिन नेताओं पर किसी भी तरह के भ्रष्टाचार अथवा संज्ञेय अपराध का आरोप साबित हो गया हो उसे चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया जाए।
गरीबों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित की जाए।
नेताओं, मंत्रियों पर होनेवाले सरकारी व्यय को कम किया जाए और इतना कर दिया जाए कि उनकी जीवन-शैली आम-आदमी के स्तर तक आ जाए।
मिश्रित खेती को बढावा दिया जाए जिसमें कृषि और पशुपालन साथ-साथ किए जायें।
१० श्रम-प्रधान कार्यों में बुद्धि-प्रधान कार्यों के सामान ही मजदूरी दी जाए जिससे श्रम की महत्ता स्थापित हो।
११ अपारंपरिक ऊर्जा पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाए जिससे ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभावों से मुक्ति मिल सके।
१२ सभी अधिकारियों, नेताओं और न्यायाधीशों के लिए साल में एक बार निर्धारित महीने में संपत्ति की घोषणा करना अनिवार्य बना दिया जाए।
१३ पारंपरिक चिकित्सा विधियों को प्राथमिकता दी जाए।
१४ अयोध्या, काशी और मथुरा में सर्वधर्म मन्दिर बनाया जाए।
१५ सेजों (स्पेशल इकनॉमिक ज़ोन) को समाप्त कर उद्योगपतियों को दी जा रही छूट समाप्त की जाए।
१६ कुटीर उद्योगों और श्रमप्रधान पारंपरिक उद्योगों को प्रोत्साहित किया जाए।
सरकार यदि इन मांगों को नहीं मानती तो गाँधी जनता से अनुरोध करते कि वह सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाये और सरकार को टैक्स देना बंद कर दे। लेकिन वर्तमान माहौल को देखते हुए ऐसा लगता है कि गाँधी के साथ सरकार बड़ी बेरहमी से पेश आती और शायद उनकी हत्या करवा दी जाती। जो विदेशी होने पर भी अंग्रेजों ने नहीं किया हमारे वर्तमान नेता उसे करने में तनिक भी नहीं झिझकते और हर तरह के हथकंडे अपनाए जाते।
आज अगर गाँधी जीवित होते हो विजय माल्या राज्यसभा में नहीं बल्कि जेल में होता अथवा किसी और व्यवसाय में लगा होता। अम्बानी, टाटा आदि के पास धन का इस तरह संकेन्द्रण नहीं होता।
किसानों को आत्महत्या नहीं करनी पड़ती और वर्तमान केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई सदस्य मंत्रिमंडल में नहीं होते।

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

ब्रज जी मुझे लगता है कि नाथूराम ने गाँधी को गोली मारकर उपकार ही किया था. अगर आज गाँधी जीवित होते तो रोज़-रोज़ ही मरना पड़ता. थैंक यू नाथूराम.
त्रिभुवन, बंगलौर