अगर आप मुझसे पूछें कि वर्तमान बिहार की सबसे बड़ी निजी कंपनी कौन-सी है तो मैं बेखटके कहूँगा बिहार सरकार और इस कंपनी के सीएमडी हैं नीतिश कुमार जी। जबसे इनकी सरकार बनी है कुछ अपवादों को छोड़कर जितनी भी बहालियाँ हुई हैं सब-की-सब संविदा यानि कांट्रेक्ट के आधार पर हुई हैं। अब सरकार क्या सोंचकर ऐसा कर रही है इसका सिर्फ़ अनुमान ही लगाया जा सकता है। शायद बँटवारे के बाद बिहार के पास इतने संसाधन ही नहीं हैं कि सरकार पुरानी सेवाशर्तों पर बहाली कर सके। या फ़िर सरकार समझती है कि इस भुक्खड़ राज्य में कामचलाऊ वेतन और शोषण परक शर्तों पर काम करने के लिए भी बहुत से लोग तैयार हो जायेंगे। अगर इसमें तनिक भी सच्चाई है तो फ़िर पूंजीपति व्यवसायियों और राज्य सरकार में कम से कम इस मामले में तो कोई अन्तर नहीं है। पहले सरकारी नौकरी में सामाजिक सुरक्षा प्राप्त होती थी। बुढापा आराम से कटने की गारंटी होती थी। अब न तो नौकरी स्थाई है न ही पेंशन मिलेगी। उस पर वेतन भी मामूली। न विश्वास हो तो सुनिए पंचायत शिक्षक या शिक्षामित्रों को मात्र चार-पॉँच हजार रुपए मासिक दी जाती है, वो भी कई-कई महीनों के बाद।
इस युग में जब खुदरा मूल्यों पर आधारित मुद्रास्फीति की दर नित-नयी उचाइयां छू रही है इतने पैसे में कैसे कोई परिवार सहित गुजारा कर सकता है। क्या नीतिश सरकार का कोई मंत्री इतने में गुजारा कर सकता है, गाड़ी, फ़ोन कुछ भी अगर फ्री न हो? बाहर से आए व्यवसायी चाहे वे मीडिया से ही जुड़े क्यों न हो अगर शोषण करते और कर भी रहे हैं तो हम राज्य सरकार के पास फरियाद लेकर जाते। अब जब राज्य सरकार ही ऐसा कर रही है तो हम तो यही कह सकते हैं-जायें तो जायें कहाँ समझेगा कौन यहाँ दर्द भरे दिल की दास्ताँ।
1 टिप्पणी:
सर मुझे तो लगता है की संविधान से लोक कल्याणकारी राज्य शब्द हटा ही देना चाहिए.
ललन, गोपालगंज
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