मित्रों, एक समय था जब बिहार सचमुच दुनिया के लिए एक नजीर या उदाहरण था. देश की आजादी के समय और तत्काल बाद बिहार प्रतिव्यक्ति आय में देश में दूसरे स्थान पर था. जबकि प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के समय सुशासन में बिहार देश में अव्वल था. कमोबेश बिहार की स्थिति १९९० तक ठीक-ठाक थी जब तक यहाँ कांग्रेस का शासन था. फिर लालू जी बिहार की मुख्यमंत्री बने और बिहार की बर्बादी शुरू हो गयी. सबसे पहले तो कानून-व्यवस्था की स्थिति ख़राब हो गयी और फिर पूरे बिहार की हर चीज ख़राब हो गयी लेकिन लालू जी फिर भी सामाजिक समीकरण के बल पर चुनाव जीतते रहे. फिर आया छोटे भाई नीतीश कुमार जी का शासन. शुरू के ५ साल कुछेक गलतियों को छोड़कर अच्छे रहे. हालाँकि बिहार की शिक्षा-व्यवस्था की हत्या की प्रक्रिया नीतीश जी के पहले कार्यकाल में ही शुरू हो गई थी. नीतीश जी ने नौकरशाही और लोकशाही में संतुलन साधने के स्थान पर सबकुछ नौकरशाही को सौंप दिया. बाद में शराबबंदी के बाद नौकरशाही और भी निरंकुश हो गयी. अब स्थिति इतनी ख़राब है कि बिहार में शासन-प्रशासन नाम की कोई चीज ही नहीं है.
मित्रों, पहले नीतीश जी जनता दरबार भी लगाते थे लेकिन आज के बिहार में ऐसी कोई व्यवस्था है ही नहीं जहाँ जाकर कोई शिकायत करे. अभी कल ही नीतीश जी लखीसराय के सूर्यगढ़ा में एक सभा को संबोधित करने गए थे. लोगों ने नारे लगाना शुरू कर दिया कि डीलर बहाली में घोटाला हुआ है तो भड़क गए और मंच से कोई आश्वासन देने के बजाए नारे लगानेवालों को जेल भेजने की धमकी देने लगे. इससे पहले भी नीतीश जी कभी पत्रकारों के सवाल पर तो कभी जनता की मांग पर भड़कते रहे हैं. ईधर तीन-चार सालों में तो उन्होंने जनता की बातों पर कान देना ही बंद कर दिया है. उल्टे सवाल उठने पर भड़क जाते हैं.
मित्रों, कुछ ऐसे ही घमंड के पहाड़ पर कुछ दिन पहले तक झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुबर दास भी चढ़े हुए थे. फिर उनकी क्या गति हुई आप सभी जानते हैं. अपने मुंह मियां मिट्ठू बनते हुए नीतीश जी ने कल-परसों में यह भी कह डाला है कि विकास में मामले में बिहार दुनिया के लिए एक नजीर है. पता नहीं नीतीश जी किस विकास की बात कर रहे हैं? बिहार में कानून-व्यवस्था की स्थिति इतनी ख़राब है कि लोगों का घर से निकलना मुश्किल है. रोज कई-कई डाके-चोरी और हत्या के समाचार तो सिर्फ हाजीपुर से आ जाते हैं. आज सुबह ही कांग्रेस नेता राकेश यादव की हत्या हुई है। इतनी ख़राब हालत तो लालू-राबड़ी के जंगलराज के समय भी बिहार की कानून-व्यवस्था की नहीं थी. भ्रष्टाचार का बिहार में वो आलम है कि क्या मजाल किसी कार्यालय में बिना रिश्वत दिए कोई काम हो जाए. यहाँ तक कि बैंक जो केंद्र सरकार के हाथों की चीज हैं भी बिहार में बिना १० प्रतिशत रिश्वत लिए मुद्रा लोन तक नहीं देते. उद्योगों का तो कहना ही क्या? जब ख़राब कानून-व्यवस्था के चलते बिहार के व्यवसायी ही राज्य छोड़कर अपनी जान बचाकर भाग रहे हैं तो बाहर से कोई क्यों आने लगा? शिक्षा-व्यवस्था सिर्फ परीक्षा-व्यवस्था बनकर रह गयी है. सरकारी अस्पताल खुद ही बीमार हैं. प्रशासनिक तत्परता की हालत ऐसी है कि राजधानी पटना में कुछ दिन पहले हुई बरसात के समय राहत कार्य नहीं चलाया जा सका दूर-दराज के इलाकों की तो बात करना ही बेमानी है.
मित्रों, ऐसी हालत में नीतीश कुमार जी कैसे कह सकते हैं कि बिहार का विकास दुनिया के लिए एक नजीर या उदाहरण है. हाँ, अगर वे ऐसा कहते कि बिहार का विनाश दुनिया के लिए एक नजीर है तो जरूर वह सच होता. कुछ इसी तरह के सब्जबाग कुछ दिन पहले तक झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास भी अपनी पार्टी नेतृत्व को दिखा रहे थे लेकिन चुनाव-परिणामों ने खुद ही उनकी पोल खोलकर रख दी है. तो क्या नीतीश जी का भी यही हश्र होनेवाला है? घमंड तो रावण का भी टूटा था. आज नीतीश जी मंच से जनता को धमकी दे रहे हैं कल वे शायद मंचासीन होने की स्थिति में भी नहीं रह जाएंगे.